Tuesday, June 13, 2006

फोटो कैप्शन से झलकती अश्लील मानसिकता

एक राष्ट्रीय अखबार में एक फिल्मी पार्टी की तसवीर छपी है और साथ में छपा है उसका फोटो कैप्शन (परिचय)। लिखने वाले ने जिस तरह रस ले-लेकर अश्लील कल्पना के आधार पर इसे तैयार किया है वह उसकी मानसिकता का परिचायक है। लगता है आजकल के अखबार अपराध पत्रिकाओं से होड़ लेने के बाद अब पोर्नोग्राफिक पत्रिकाओं को भी पीछे छोड़ने पर आमादा हैं। जरा देखिए, रचनात्मकता के नाम पर भाई लोग किस हद तक लिबर्टी ले लेते हैं। (साफ पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें)।

Sunday, June 04, 2006

अपनी ही पीठ ठोंकता टाइम्स ऑफ इंडिया

छोटे अखबारों को तो बार-बार ऐसा करते देखा है लेकिन जब टाइम्स ऑफ इंडिया जैसा विश्व का सर्वाधिक पाठकों से युक्त अंग्रेजी अखबार भी छोटी सी बात पर अपनी पीठ ठोंकने लगे तो अफसोस होता है। अंग्रेजी के नंबर वन अखबार ने चार जून को मुखपृष्ठ पर बॉक्स बनाकर खबर छापी है कि हमने जो कहा था कि प्रमोद महाजन के पुत्र राहुल महाजन और सचिव विवेक मोइत्रा ने हेरोइन का सेवन किया था वही सही है। अखबार ने लिखा है, हमने कहा कि हेरोइन है, उन सबने (प्रतिद्वंद्वी अखबारों ने)कहा- कोकीन है। शनिवार की सुबह उन सबने हमारी खिल्ली उड़ाई। लेकिन हमने शाम तक इंतजार किया, हंसे और कहा कि वे सब के सब गलत हैं। सभी दूसरे अखबार, सभी चैनल। टाइम्स ऑफ इंडिया को छोड़कर सब। टाइम्स ऑफ इंडिया अकेला अखबार है जिसने पहले ही दिन कह दिया था कि महाजन-मोइत्रा ने हेरोइन ली थी (कोकीन नहीं)।



कितनी बड़ी विडम्बना है! क्या यह सचमुच इतनी बड़ी बात है कि इसके लिए टाइम्स को अपने मुखपृष्ठ पर बॉक्स बनाकर खबर छापनी चाहिए कि "कोकीन नहीं हेरोइन थी। वही जो हमने कहा था।" मुद्दा नशे की वैराइटी का नहीं है। मुद्दा यह है कि क्या राहुल और मोइत्रा ने ड्रग्स लिए थे? यदि हां, यही जानकारी पर्याप्त है। हेरोइन लें या कोकीन, तथ्यों में कोई बहुत बड़ा फर्क नहीं आने वाला और न ही इससे जांच में कोई नया मोड़ आएगा। अपने समझ में तो नहीं आया कि क्या इसके लिए यूं जोर-शोर से पीठ थपथपाने की जरूरत है?