Thursday, September 28, 2006

आजतक ने संसद भवन में पहुंचाया और जेल भी

बलबीर सिंह राजपूत याद हैं आपको? शत्रुघ्न सिन्हा के हमशक्ल इन सज्जन को आजतक वालों ने खूब इस्तेमाल किया। आजतक की योजना के अनुसार वे आठ अगस्त 2003 को बड़े मजे से मोबाइल पर बात करते हुए संसद भवन की सुरक्षा भेदकर भीतर पहुंच गए थे। इस टीवी चैनल ने उस कार्यक्रम को खूब प्रचारित किया, जमकर टीआरपी बटोरी और काम निकलते ही बलबीर सिंह से पल्ला झाड़ लिया। बलबीर सिंह के खिलाफ बाकायदा मुकदमा दर्ज किया गया जो तीन साल से जारी है। हालत यहां तक पहुंच गई कि पिछले दिनों कोई जमानती न मिलने के कारण उन्हें जेल भिजवा दिया गया। जिस टीवी चैनल ने उन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया वह कम से कम उनकी जमानत देने जितनी सी नैतिकता तो दिखा ही सकता था?

नैतिकता? आप किस नैतिकता और संवेदना की बात कर रहे हैं? जो मीडिया बिहार में किसी को आत्महत्या के लिए उकसा सकता है और उसकी आत्महत्या का लाइव प्रसारण कर सकता है, जो मीडिया लोगों द्वारा यातना देकर चोरों को जान से मारे जाने की घटना का सीधा प्रसारण कर सकता है, जो किसी व्यक्ति को उसकी महिला रिश्तेदार द्वारा लगाए गए बलात्कार के झूठे आरोपों का सच की पुष्टि किए बिना प्रचार कर उसकी आत्महत्या का कारण बन सकता है, उसका नैतिकता से क्या अब भी कोई संबंध बचा रह गया है? और कानून? किसी की हत्या के मामले में जब हत्या की साजिश रचने वाला भाड़े के हत्यारों से अधिक दोषी माना जाता है तो बलबीर सिंह राजपूत के मामले में क्या टेलीविजन चैनल को वास्तविक दोषी नहीं माना जाना चाहिए? आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कानून इस मामले में आजतक के पत्रकारों को 2004 में ही दोषमुक्त करार दे चुका है। यानी कानून की नजर में दोषी वह है जो वास्तव में खुद शोषित है?

Monday, September 25, 2006

बिहार के कहां से कहां पहुंचा दिए हैं नीतिश बाबू!

बिहार सरकार ने टाइम्स ऑफ इंडिया में चौथाई पेज का विज्ञापन दिया है जिसमें कहा गया है कि देखिए नीतिश कुमार की सरकार ने राज्य को नंबर वन बना दिया है। विज्ञापन यह भी कहता है कि यह बात हम नहीं कहते, बल्कि जमाना कहता है। अब जरा देखें कि विज्ञापन में नीतिश सरकार की कौनसी उपलब्धियां गिनाई गई हैं। विज्ञापन में छापी गई अखबारों की कतरनों में जिन उपलब्धियों का ब्यौरा दिया गया है वे हैं- उज्जैनी व ऐश्वर्य नामक प्रतिभावान गायिकाओं का जी टीवी के संगीत कार्यक्रम के मेगा फाइनल में पहुंचना और दूसरा बिहारी किशोरी शिल्पी का ब्रिटेन में टेनिस खिताब जीतना। इन तीनों प्रतिभाओं ने न सिर्फ बिहार बल्कि देश को भी गौरवान्वित किया है, इसमं कोई संदेह नहीं। लेकिन इसमें नीतिश कुमार सरकार का क्या हाथ है? क्या सरकारी उपलब्धियों और तरक्की के नाम पर बिहार को यही मिलेगा?

Saturday, September 23, 2006

इन हिंदी अखबारों की भाषा में हिंदी है कहां

नवभारत टाइम्स ने कुछ अच्छे और कई बुरे प्रयोग किए हैं। उनमें से एक है अखबार की भाषा के साथ खिलवाड़। आपको याद होगा कुछ साल पहले इस अखबार ने अपने शीर्षकों में अंग्रेजी का प्रयोग करने की परंपरा शुरू की थी। हालांकि जहां तक मैं समझता हूं, यह फैसला संपादकीय स्तर पर कम, मार्केटिंग के स्तर पर ज्यादा किया गया था। अखबार के शीर्षक कुछ इस तरह के होते थे-

- अमेरिका कश्मीर मुद्दे पर mediation नहीं करेगाः बुश या
- Inflation ने फिर पांच फीसदी का figure पार किया

खैर, नवभारत में तो इस तरह के प्रयोग कम हो गए हैं लेकिन दूसरे अखबारों ने (जो बड़े अखबारों का अंधानुकरण करने में कोई कसर नहीं छोड़ते), इसे अपना लिया है। इनमें से कुछ तो अपने लेखों और खबरों में इतनी अंग्रेजी (कहीं देवनागरी लिपि में तो कहीं रोमन में भी) का प्रयोग कर रहे हैं कि लगता है भाषा के भ्रष्ट होने की यही गति जारी रही तो कुछ साल में ये अखबार देवनागरी लिपि में छपे अंग्रेजी अखबार बन कर न रह जाएं। जागरण और भास्कर की अंग्रेजीकृत खबरों की चर्चा हम पहले कर चुके हैं। अब राष्ट्रीय सहारा, दैनिक हिंदुस्तान और पंजाब केसरी की बानगी पेश है-



Tuesday, September 19, 2006

सर्वव्यापी हुआ दूरदर्शन

यूनीवार्ता खबर एजेंसी से आए इस समाचार ने चौंका दिया कि हंगरी में दूरदर्शन केंद्र पर कब्जा कर लिया गया है। दूरदर्शन का केंद्र हंगरी में? बात कुछ हजम नहीं हुई। बाद में पता चला कि भाईलोगों ने 'टेलीविजन चैनल' का अनुवाद 'दूरदर्शन' किया है। फिर तो दुनिया भर के टेलीविजन चैनल दूरदर्शन ही हुए, मसलन- सीएनएन दूरदर्शन, बीबीसी दूरदर्शन, एनडीटीवी दूरदर्शन और यहां तक कि पाकिस्तान दूरदर्शन (पीटीवी)!

Thursday, September 14, 2006

पहचान कौन?

अखबार में फोटो छापने की जगह खाली है और ढंग का कोई फोटो मौजूद नहीं है। ऐसे में जो फोटो मिल जाए, चलेगा। वह कहां का फोटो है, उसे किसलिए खींचा गया और फोटो में मौजूद लोग कौन हैं, इस बात की जानकारी न हो तो भी एक अच्छा खासा काल्पनिक विवरण लिखकर फोटो छापा जा सकता है। जैसे कि इस फोटो में किया गया। पत्रकार महोदय को पता नहीं कि ये कौन लोग हैं। उन्होंने बड़ी सफाई से इन्हें पहचानने का जिम्मा आप (पाठक) पर ही छोड़ दिया है, यह कहते हुए कि (हम भले न जानें) आप तो इन्हें जानते ही होंगे! भला सारी मेहनत पत्रकार ही क्यों करे, पाठकों को भी तो अपने दिमाग पर जोर डालने का मौका मिलना चाहिए?

फरहा को भाया शकीरा का 'सैक्स अनुभव'!

एक दैनिक अखबार के फिल्मी संस्करण में पॉप सिंगर शकीरा के बारे में अपनी कोरियोग्राफर फरहा खान के विचार छपे हैं। ये विचार फरहा के तो शायद ही हों क्योंकि यदि वे किसी महिला के बारे में इस तरह की शब्दावली का प्रयोग करेंगी तो उनके अपने बारे में कई तरह के भ्रम फैल जाएंगे। हां, जिस पत्रकार बंधु ने यह पीस लिखा उसकी मानसिकता का पता जरूर चलता है। लगता है भाई ने शकीरा के प्रति अपने विचारों की अभिव्यक्ति में कोई कसर नहीं छोड़ी।

बुजुर्ग भाजपाइयों के बीच फंसे मंत्रीजी

अमर उजाला ने अच्छा खासा महत्व देते हुए एक खबर छापी है जिसमें भाजपा के बुजुर्ग हो चुके नेताओं की बेकद्री का जिक्र किया गया है। खबर तो सोलह आने सच है, लेकिन इसके साथ जिन भाजपा नेताओं के चित्र दिए गए हैं उनमें पहले ही (अश्विनी कुमार) असल में कांग्रेसी सांसद और केंद्रीय उद्योग राज्यमंत्री हैं जिनका भाजपा से दूर-दूर तक लेना-देना नहीं रहा। हां, एक अश्विनीजी भाजपा में भी हैं मगर लगता है उनका फोटो नहीं मिल पाया।

Monday, September 04, 2006

तो अब बालों का भी कत्ल होने लगा?

दैनिक भास्कर ने सनसनीखेज खबर छापी है कि दिल्ली में एक सिख युवक के बालों का कत्ल कर दिया गया। रिपोर्टर शायद कोई भावुक किस्म का या फिर बहुत ज्यादा धार्मिक प्राणी रहा होगा। लेकिन जिस तरह उपसंपादक और मुख्य उपसंपादक ने भी खबर को यूं ही जाने दिया, उससे लगता है कि वे भी रिपोर्टर के स्टैंड से असहमत नहीं होंगे। युवक के बालों को भी अपने इस नए स्टेटस पर गर्व हो रहा होगा कि कटे तो जरूर मगर कत्ल का शोर करवाकर। यह खबर पढ़ने के बाद उंगली कटाकर शहीद होने वाली बात उतनी असंभव नहीं लगती। भई जब बाल कत्ल हो सकते हैं तो उंगली शहीद क्यों नहीं?